धर्मशाला (कृतिका शर्मा)
विश्व के मानचित्र पर धर्म नगरी मैक्लोडगंज में पिछले 15 सालों से गुजरात का एक परिवार दिहाड़ी मजदूरी कर अपने बच्चों का पालन पोषण कर रहा है। पिता प्लास्टिक का सामान बेचने का काम करता है तो मां लोगों के घरों में झाड़ू बर्तन करके रोजी-रोटी का जुगाड़ कर रहे है।

इसी परिवार में पलने वाली दसवीं कक्षा की छात्रा करीना के अंदर एक सपना जाग उठा है कि वह पढ़ लिखकर डॉक्टर बनेगी। करीना स्कूल से जब भी छुट्टी होती है तो अपनी मां के साथ-साथ चल पड़ती है। करीना की मां दलाई लामा टेंपल के चारों तरफ झाड़ू लगाती है और करीना इसी रास्ते पर जमीन पर बैठकर अपनी पढ़ाई को जारी रखती है।
जहां एक तरफ आधुनिक दौर में बच्चों को पढ़ाई के लिए सारी सुख सुविधाएँ मौजूद होती है तो वहीं करीना जमीन पर बिना चटाई और बिना किसी बिछोने के ही बैठकर पढ़ाई करती है। इस लड़की के अंदर का जूनून ही है कि यह लड़की पढ़ लिखकर डॉक्टर बनने का सपना देख रही है ताकि बड़ी होकर के अपने परिवार की जिम्मेदारी को समझ सके।
करीना के तीन भाई हैं और यह इकलौती बहन है जिसको अब यह बात सताने लगी है कि कब तक मां-बाप दिहाड़ी लगाकर बच्चों का भरण पोषण करते रहेंगे। करीना ने सोच लिया है की बड़ी होकर घर की जिम्मेदारियों में भागीदार बनेगी।
अक्सर जहाँ बच्चों को पढ़ाने के लिए मां-बाप को कड़ी मशकत करनी पड़ती है वहीं करीना किताबों को छोड़ती ही नहीं है और किताबों में ही अपना भविष्य तलाश रही है।
इस बावत जब इससे बात की गई तो यह शर्मा गई लेकिन उसके बाद उसने अपनी सारी बातें हमसे सांझा की। उसने बताया कि वह सरकारी स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ती है और उसको उम्मीद है कि वह खूब पढ़ लिख कर डॉक्टर बनेगी।
अब देखना यह होगा कि क्या वाकई में जमीन से जुड़ी हुई इस लड़की के पंखों की उड़ान पूरी होगी क्या करीना डॉक्टर बन पाएगी और क्या वह अपने परिवार की जिम्मेदारी को समझ पाएगी यह अभी भविष्य के गर्भ में छिपा है लेकिन ऐसी लगन और जुनून जिसके अंदर होता है उसके पंखों को हमेशा उड़ान मिलती है