केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशन द्वारा 16 फरवरी को की जाएगी देशव्यापी हड़ताल

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केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व राष्ट्रीय फेडरेशनों के संयुक्त मंच की हिमाचल प्रदेश इकाई ने 16 फरवरी की देशव्यापी हड़ताल के सिलसिले में सीटू कार्यालय शिमला में राज्य स्तरीय बैठक का आयोजन किया। बैठक में फैसला लिया गया कि हड़ताल को सफल बनाने के लिए प्रदेश के औद्योगिक मजदूरों का एक राज्य अधिवेशन 11 फरवरी को बद्दी में किया जाएगा। बैठक को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने केंद्र सरकार की मज़दूर, ट्रांसपोर्ट, किसान, कर्मचारी व जनता विरोधी नीतियों की खुली आलोचना की। उन्होंने केंद्र सरकार को चेताया कि अगर उसने पूँजीपतिपरस्त नीतियों को बन्द न किया तो आंदोलन तेज होगा। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की है कि मजदूर विरोधी चार लेबर कोड निरस्त किये जाएं। सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण बन्द किया जाए व नेशनल मोनेटाइजेशन पाइप लाइन योजना को वापिस लिया जाए। मजदूरों का न्यूनतम वेतन 26 हज़ार रुपये घोषित किया जाए। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील कर्मियों को नियमित कर्मचारी घोषित किया जाए। मनरेगा में एक सौ बीस दिन का रोजगार दिया जाए व 375 रुपये दिहाड़ी लागू की जाए। भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए। आउटसोर्स व ठेका प्रथा पर रोक लगाई जाए। आउटसोर्स के लिए ठोस नीति बनाई जाए। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी बदलाव बन्द किये जाएं।

उन्होंने कहा कि प्रदेश के हज़ारों मजदूर व कर्मचारी 16 फरवरी की हड़ताल में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार पूंजीपतियों व औद्योगिक घरानों के हित में कार्य कर रही है तथा मजदूर,कर्मचारी व आम जनता विरोधी कार्य कर रही है। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साज़िश की जा रही है। उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित सरकारी कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है। माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स,ठेका,दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है और न ही उनके नियमितीकरण के लिए कोई नीति बनाई जा रही है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है। मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी परिवर्तनों से इस क्षेत्र से जुड़े लोग रोज़गार से वंचित हो जाएंगे व विदेशी कम्पनियों का बोलबाला हो जाएगा।

उन्होंने मांग की है कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन 26 हज़ार रुपये घोषित किया जाए। केंद्र व राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए। आंगनबाड़ी,मिड डे मील,आशा व अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। मनरेगा में 120 दिन का रोज़गार दिया जाए व राज्य सरकार द्वारा घोषित 375 रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए। श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण व आर्थिक लाभ बहाल किए जाएं। कॉन्ट्रैक्ट,फिक्स टर्म,आउटसोर्स, मल्टी टास्क व ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोज़गार दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए। बैंक,बीमा,बी.एस.एन.एल.,रक्षा,बिजली,परिवहन,पोस्टल,रेलवे,एन.टी.पी.एस.,एन.एच.पी.सी.,एस.जे.वी.एन.एल.,कोयला,बंदरगाहों,एयरपोर्टों,सीमेंट,शिक्षा,स्वास्थ्य व अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश व निजीकरण बन्द किया जाए। मोटर व्हीकल एक्ट में परिवहन मजदूर व मालिक विरोधी जेल, सज़ा व आर्थिक दण्ड की धाराओं को वापिस लिया जाए।

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