शिमला के धामी में मनाया गया पत्थर मेला, सदियों से चली आ रही पत्थर के खेल की अनोखी परंपरा

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शिमला

दीपावली के ठीक दूसरे दिन शिमला ग्रामीण के धामी में अनोखा मेला होता है। देवभूमि में पौराणिक मान्यताएं, देव आस्था की बातें हर किसी को हैरान कर देती हैं। शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के हलोग धामी में दिवाली के दूसरे रोज सदियों से चली आ रही पत्थर के खेल की अनोखी परंपरा को पूरे उत्साह और जोश से निभाया जाता है।

पत्थर के खेल इस खेल में दो पक्षों के बीच तब तक पत्थरबाजी होती है जब तक किसी एक व्यक्ति के सिर से खून न बहने लगे। यह खेल माता सती का शारड़ा चबूतरे के दोनों ओर खड़ी टोलियों जठोती और जमोगी के बीच होता है। सिर से निकले खून से भद्रकाली के मंदिर में जाकर तिलक कर परंपरा को पूरा किया गया। घायल का प्राथमिक उपचार किया जाता है। ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ इस पत्थर युद्ध में बड़ी संख्या में युवा शामिल होते हैं, वहीं हजारों की भीड़ ने खेल देखने का आनंद लेती है।

धामी रियासत के उत्तराधिकारी जगदीप सिंह के अनुसार सैकड़ों वर्ष पूर्व रियासत और क्षेत्र की जनता की सुख-शांति के लिए क्षेत्र में नरबलि की प्रथा थी। इसके विकल्प के रूप में यहां की सती हुई रानी ने नरबलि की जगह इस खेल को करवाने की प्रथा शुरू की, जिससे किसी की जान भी न जाए, क्षेत्र में सुख-शांति रखने को भद्रकाली के मंदिर में खून से मानव खून का तिलक कर परंपरा का निर्वाह भी हो जाए। तब से लेकर इसी अंदाज में इस पत्थर के खेल का आयोजन राज परिवार करवाता आ रहा है। हालांकि, अब समय के साथ पत्थर मेला मात्र औपचारिकता तक ही सीमित रह गया है।

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