सचिवालय कर्मचारियों के आंदोलन का सीटू राज्य कमेटी ने किया पुरज़ोर समर्थन

Himachal News

शिमला
सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने हिमाचल प्रदेश सरकार सचिवालय छोटा शिमला के कर्मचारियों के आंदोलन का पुरज़ोर समर्थन किया है व पूर्ण एकजुटता प्रकट की है। सीटू ने माननीय मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू से मांग की है कि वह तुरंत आंदोलनकारी कर्मचारियों को बातचीत के लिए बुलाएं व उनकी समस्याओं का तत्काल समाधान करें। सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर शीघ्र ही कर्मचारियों की मांगों को पूर्ण न किया गया तो सीटू भी पूरे प्रदेश में कर्मचारियों के समर्थन में एकजुटता कार्रवाइयां शुरू करेगा।

सीटू प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि कर्मचारियों की मांगें वाजिब हैं व उनका तत्काल समाधान होना चाहिए। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि कर्मचारियों के वर्ष 2016 में आए सातवें केंद्रीय वेतन आयोग के जरिए हुई वेतन बढ़ोतरी को हिमाचल प्रदेश में 8 वर्ष बीतने के बाद भी पूर्णतः लागू नहीं किया गया है। केवल चंद हज़ार रुपये कर्मचारियों के खाते में डालकर प्रदेश के कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग में मिलने वाले लाखों रुपये का भुगतान नहीं किया गया है। इसके एरियर का तुरंत भुगतान होना चाहिए क्योंकि यह कर्मचारियों का बुनियादी हक है।
कर्मचारियों को 12 प्रतिशत डीए का भी भुगतान नहीं किया गया है जोकि दुर्भाग्यपूर्ण है। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के निर्माण व संचालन में सेवा क्षेत्र व कर्मचारियों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिमाचल के सामाजिक विकास व आर्थिक वृद्धि में जनता के अन्य तबकों के साथ ही कर्मचारियों का अग्रणी योगदान रहा है। इस योगदान के चलते ही शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसे सामाजिक सरोकारों व मानकों में हिमाचल प्रदेश पूरे देश में अग्रणी राज्यों में स्थापित हुआ है। कर्मचारियों ने हमेशा अपने सामाजिक दायित्वों का बखूबी निर्वहन किया है। कोविड काल में कर्मचारियों ने महामारी की परवाह किये बगैर अपनी सेवाएं देकर मानवीय मूल्यों के उच्च आदर्शों को स्थापित किया है। कोविड काल में कर्मचारियों के लगभग ग्यारह प्रतिशत डीए पर केंद्र व प्रदेश सरकार नद पहले ही कुंडली मार ली थी। कोविड महामारी व प्रदेश में समय-समय पर आई प्राकृतिक आपदाओं में कर्मचारियों ने अपने वेतन के जरिए मुख्यमंत्री राहत कोष में करोड़ों रुपए का आर्थिक योगदान दिया है।

आर्थिक तंगी का बहाना बनाकर कर्मचारियों के आर्थिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है जबकि प्रदेश सरकार व इसकी संस्थाओं में कार्यरत आलाधिकारी निरन्तर फिजूलखर्ची करते रहे हैं। कर्मचारियों द्वारा सरकार के मंत्रियों, मुख्य संसदीय सचिवों व अधिकारियों द्वारा की जा रही ही फ़िज़ूलखर्ची पर प्रश्न उठाना लाजिमी है। कर्मचारियों के आर्थिक लाभों में कटौती करके प्रदेश सरकार आर्थिक संकट से बाहर नहीं निकल सकती है। याद रखना चाहिए कि आर्थिक संकट नवउदारवादी जनविरोधी पूंजीवाद परस्त नीतियों व योजना का परिणाम है। इन नीतियों को बदले बगैर आर्थिक संकट से बाहर नहीं निकला जा सकता है।

आर्थिक संकट से बाहर निकलने के लिए सरकार को सुनियोजित दूरदर्शी कदम उठाने चाहिए व उसका ब्लू प्रिंट तैयार करना चाहिए। केंद्र से अपनी जीएसटी हिस्सेदारी, पंजाब पुनर्गठन की हिस्सेदारी, जंगलों व नदियों के पानी की हिस्सेदारी, रंगराजन आयोग की सिफारिशों की हिस्सेदारी, विशेष राज्य के दर्जे की हिस्सेदारी, पेंशन फंड रेगुलेटरी डेवेलपमेंट अथॉरिटी के ज़रिए लाखों कर्मचारियों की केंद्र सरकार के पास बकाया हज़ारों करोड़ रुपये की राशि, औद्योगिकरण, कृषि व बागवानी आधारित उद्योग लगाने, नए संसाधनों का विकास व संघीय ढांचे के आधार पर सम्पूर्ण हिस्सेदारी आदि कदमों से प्रदेश में आर्थिक संकट को टाला जा सकता है।

कर्मचारियों के वेतन पर डाका डालकर आर्थिक संकट से बाहर निकलना जनविरोधी मानसिकता है। सरकार को कर्मचारियों के आंदोलन को दबाने, उन्हें डराने धमकाने, फ़िज़ूल नसीहतें देने व उनकी सुविधाओं में कटौती करने की बेबुनियाद बातें तुरंत बंद करनी चाहिए और इसके बजाय कर्मचारियों के मुद्दों का समाधान तलाशना चाहिए।

माननीय मुख्यमंत्री को तुरंत इस विषय पर हस्तक्षेप करते हुए कर्मचारियों को वार्ता के लिए आमंत्रित करना चाहिए तथा उनकी मांगों पर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। सरकार को यह समझना चाहिए कि प्रदेश के लाखों कर्मचारियों व पेंशनरों की बुनियादी जरूरतों व आर्थिक लाभों पर सरकार द्वारा ऊल जलूल तर्क देकर कैंची नहीं चलाई जा सकती है क्योंकि संविधान व लोकतंत्र इसकी कतई इजाजत नहीं देता है। माननीय मुख्यमंत्री को अपने मंत्रियों को तुरंत निर्देश देने चाहिए कि वे कर्मचारी आंदोलन पर अनाप-शनाप बयान बाजी तुरंत बंद करें क्योंकि यूनियन बनाने, उसे चलाने व मांगों की पूर्ति के लिए आंदोलन करना संविधान में अंतर्निहित है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *