शिमला
मिड डे मील योजना के तहत स्कूलों में बच्चों को दोपहर का भोजन बनाने को लेकर शिक्षा विभाग ने सख्ती कर दी है। स्कूलों में वर्कर (कुक कम हेल्पर) को घड़ी, अंगूठी, चूड़ियों सहित अन्य ज्वैलरी पहनकर खाना बनाने और परोसने पर रोक लगा दी है।
कुक कम हेल्पर नेल पॉलिश लगाकर भी खाना नहीं बना पाएंगे। यही नहीं खाना बनाते वक्त उन्हें कृत्रिम नाखून और अन्य तरह की चीजें पहनने की अनुमति नहीं होगी।
प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने गुणवत्ता और सुरक्षा के मद्देनजर यह गाइडलाइन तैयार की है। सभी स्कूलों को निर्देश दिए हैं कि वह इसका पालन करें। स्कूल प्रधानाचार्य, मुख्य अध्यापक, सीएचटी जिनके अधीन कुक कम हेल्पर हैं, उन्हें कहा गया है कि वे प्रतिदिन खाना बनाने के दौरान उक्त सावधानियों का पालन हो रहा है इसे सुनिश्चित करें।
स्कूलों को निर्देश दिए गए हैं कि जहां पर खाना बनेगा व परोसा जाएगा वहां पर खाना बनाने से पहले व परोसने के बाद सफाई की जाए। किचन में धूमपान करना, थूकना और नाक साफ करना विशेष रूप से प्रतिबंधित होगा। कर्मी के पास पर्याप्त और उपयुक्त स्वच्छ कपड़े होने चाहिए। उनके बाल साफ-सुथरे ढंग से बंधे होने चाहिए।
इसके पीछे तर्क दिया गया है कि चावल, दाल को जब पानी में धोते हैं या साफ करते हैं उस वक्त कृत्रिम नाखून इसमें गिर सकता है, जो बाद में खाने में आ सकता है।
प्रारंभिक शिक्षा विभाग के अतिरिक्त निदेशक बीआर शर्मा की ओर से इस संबंध में सभी स्कूलों को एक सर्कुलर जारी किया गया है। इससे पहले मिड-डे मील बनाने को लेकर इस तरह की सख्ती कोरोना के समय हुई थी।
शिक्षा विभाग की ओर से जारी निर्देशों में कहा गया है कि स्कूल के एक शिक्षक की ड्यूटी लगेगी जो मिड-डे मील को चखेगा। इसके अलावा एसएमसी का एक सदस्य भी स्कूल में आकर खाने की गुणवत्ता को चेक करेगा। यह औपचारिकता नहीं होगी, बल्कि इसका रिकॉर्ड लिखना होगा। खाना पकाने के क्षेत्र में किसी भी कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाएगा। भंडारण और खाना पकाने की जगह जानवरों, पक्षियों को नहीं आने दिया जाए। बच्चों को खाने से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोने के लिए कहा जाए। भोजन का सरकारी खाद्य अनुसंधान प्रयोगशाला या कानून द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी प्रयोगशाला द्वारा मूल्यांकन और प्रमाणित किया जाना अनिवार्य होगा। महीने में कम से कम एक बार चयनित स्कूलों से नमूने एकत्र कर प्रयोगशाला में जांच होगी। प्रदेश में कुल 15065 स्कूल हैं, जिनमें मिड डे मील बनता है। करीब साढ़े पांच लाख बच्चों को रोजाना मिड-डे मील परोसा जाता है।